मुक्तक

सुकूं वो हमारे तो कुछ कम न होते,

वहम में फंसे जो गर तुम न होते,

हमारा विरह था ज़रूरी ही शायद,

अगर वो न होता तो हम हम न होते।

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Naman Kaushik

सुनी बात जग की तो ऐसा हुआ फिर, जले जल में रघुवर सिया के विरह में।